यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।
स्त्री
प्रेम नही पूजा करती है उस पुरुष की... जो उसका सम्मान करते हैं|
स्त्री सौंप देती है अपना सब कुछ, उस पुरुष को, जिसके स्पर्श भाव से वो संतुष्ट होती है|
स्त्री छूना चाहती है प्रेम में उस पुरुष को, जिसके कांधे पर सिर रख खुद को सुरक्षित महसूस करती है|
स्त्री हो कर भी नही हो पाती उस पुरुष की, जो खुद के अंहकार की ताकत हर वक्त दिखाता रहता है, कभी उसके तन पर तो कभी उसके कोमल मन पर|
स्त्री नफरत करती है उस पुरुष से, जो उसके अस्तित्व को ठेस पहुचाते हैं|
स्त्री लड़ना नही चाहती पर लड़ जाती हैं, उस पुरुष से जिस पर अपना अधिकार समझती हैं|
स्त्री बड़बोली होती है, पर खामोश हो जाती है तब, जब प्रेम में किसी वास्तु की तरह ठुकरा दी जाती है|
स्त्री कभी पलट कर नही देखती उस पुरुष को, जो उसको छलते हैं, प्रेम के नाम पर|
स्त्री पुरुष के अहंकार से नहीं, उसके व्यक्तित्व से प्रेम करती है, जो परमेश्वर नही होता बल्कि होता है प्रेमी, बस एक प्रेमी जो पढ़ना जानता हो स्त्री के मोन को, उसके भाव को|